Saturday, February 2, 2019

शायद ये जानते हुए की....


शायद ये जानते हुए की जानकार कुछ नहीं होगा मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ की तुम कैसी हो, खाना टाइम पर खा लेती होना वो  इसलिए रहा हूँ क्यूंकि जब तुम इस दुनिया में थी तब तुम हमेशा लेट करती थी खाना खाने में, वक़्त पर घर पहुँचने में, लेकिन अब तुम्हारी दुनिया बदल चुकी है तो सोचा तुम्हारी थोड़ी सी ही  लेकिन सोच लूँ I एक सवाल है जिससे तुम्हारे जाने के बाद मैं हमेशा दो-चार रहा हूँ और वो है की मैं कैसा हूँ, इसका जवाब मैंने अब ढूंढ लिया है और मैं दुनिया को बताना चाहता हूँ की मैं अब ठीक हूँ, जब सब कुछ ख़त्म हो जाता है तो सब ठीक हो जाते हैं I  अब शायद हो गया है चाहे वो चाह थी या कोई भी राह, दुनिया को मैं समझ नहीं आ  और ना मुझे दुनिया समझ आ रही है, पहले मुझे इन बातों का बहुत फ़र्क़ पड़ता था की कुछ होगा तो ना-जाने क्या हो जाएगा लेकिन शायद अब ऐसा मानने लगा हूँ की दुःख आपको बुद्ध के करीब ले जाता है और फिर आपको ध्यान में ले जाकर जीवन की अलग राह पर खड़ा कर देता है I

दुःख से बड़ा साथी ना कोई हुआ है और ना कोई होगा कभी, दुःख हमेशा साथ रहता है उस पसंदीदा मैली कमीज़ की तरह  चाहकर भी आप ख़ुद से अलग नहीं करना चाहते हैं, मुझे कभी नहीं लगता था की मैं जीवन में इतना शांत चित्त व्यक्तित्व को अपना पाऊंगा लेकिन जैसे-जैसे लोगो ने मेरा साथ छोड़ा है मेरा ख़ुद पर यक़ीन कुछ ज़्यादा हो गया है, पहले मैं तुम्हें कोसता था की तुम्हारी ज़िंदगी भी मेरी तरह ख़राब हो जाए लेकिन अब जब मैं उस दुःख को देखता हूँ तो ऐसा लगता है की वो मेरे जीवन के सबसे सुखद और दुःखद पलों में से एक थे I  अब उन पलों की गर्माहट शायद ताउम्र  रहेगी और मुझे हमेशा के लिए लिखने मजबूर करेगा I

वैसे कई सवाल हैं जिन्हे शायद मैं आने वाले समय में इस दुनिया से पूछता रहूँगा जिन्हे मुझे पूछना चाहिए, जो पहले भी पूछे जाते रहे होंगे और आगे भी पूछे जाएंगे । कई बार ऐसा लगता है जो हुआ अच्छा हुआ लेकिन कई बार लगता है ना होता तो और बुरा होता । अब जब इतना प्रेम से भर जाने के बाद लिखता हूँ तो ऐसा लगता है की प्रेम में आदमी शिव बन जाता है जो बस ज़हर को अपने भीतर समेटकर दुनिया को काम करता है । अब शायद मैं हर उस व्यक्ति का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने मेरे दिल को ख़ंज़र मारे और हर बार मुझे धोखा दिया क्यूंकि अगर शायद वो ऐसा नहीं करते तो आज मैं इस इश्क़ की इंतेहा तक नहीं आ पाता और जीवन भर ज़िन्दगी को एक रंगीन चश्मे से देखता है, लेकिन जो है ठीक इसका उल्टा ।

तुम्हारी ज़ुल्फ़ें आज भी उन्हीं रंगीनियों से लबरेज़ होंगी जैसा वो रहा करती थी मेरे साथ, शायद तुम अब एक इंसान के तौर पर निखर गई होगी ।
ये उम्मीद मुझे हमेशा रही है की तुम इंसान के तौर पर ज़रूर बदलाव की राह पर रहोगी हमेशा लेकिन बस डर ईसिस बात का रहा है की तुम फिसल जाती हो अपने ही ख्यालों में और सही ग़लत का फैसला करना मुश्क़िल हो जाता है । 

इतना सब कुछ होने के बाद मेरे लिखने में खुलापन आया है क्यूंकि अब मैं किसी भी तरह के भय गया हूँ, दिल इतनी बार हर तरह से टूटकर चकनाचूर हो चूका है की अब किसी बात की फ़िक्र नहीं है । जिन लोगो ने साथ रहने के वादे किये वो अब दूर जा चुके हैं और मैं भी निश्चिंत हो गया हूँ और किसी को रोकना भी नहीं चाहता हूँ, शायद उन्हें रोकने की कोशिश में मैं ख़ुद को ख़त्म ना कर लूँ ।

मैं अब मरना नहीं चाहता बल्कि जीते जी मरने की खाव्हिश ज़्यादा रहती है, जिन आदर्श स्तिथि में हर लेखक होना चाहता है । लिखने की हर एक अवस्था आपको प्रेम के नजदीक ले जाती है और प्रेम की हर एक चाह मौत की तरफ । समझौता करने की स्तिथि इंसान को कमज़ोर बना देती है और आदमी टूटने की कगार पर आ जाता है, मैं टूटना नहीं चाहता इसलिए मैं कभी हार नहीं मानूँगा । जिन लोगों को मोह्हबत करनी है और इसी को जीवन का तरीका बनाना है उन्हें टूटना नहीं चाहिए क्यूंकि बहुत कम लोग हैं जो दुनिया में ज़िंदा हैं ।

लोगो ने अपनी ज़िंदगियों को नए घरों, शहरों, नयी इमारतों, महँगे कपड़ों, लजीज़ खानों में फँसा लिया है और उन्हें लगता है की ये सब कभी ख़त्म नहीं होगा और ये ही असली ज़िंदगी है, उन लोगो को इंशाल्लाह ज़िंदगी का सामने करने का मौका मिले ।

 बाकी साहिर साहब सब कुछ कह ही गए हैं, प्यार और नफ़रत करने वालों के लिए बहुत कुछ लिखते रहना है ।  


अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी

#साहिर लुधियानवी 

Friday, June 8, 2018


"हाँ सब कुछ तो वैसा ही है"



हाँ सब कुछ तो वैसा ही है 
आसमान,ज़मीन,पंछी,नदी वैसे ही उतर रही है पहाड़ों से 
लोग भाग रहे है अपने सपनों के पीछे मैं भी उसी दौड़ का 
एक हिस्सा हूँ शायद 
लोग रोज़ उठते है अपने बिस्तर से अपनी किस्मत को सुबह देखने के साथ
हाँ, शायद मेरा ये ख़्वाब कभी पूरा ना हो
ख़ैर, सब निकल रहे है सुबह-सुबह
बस,मैट्रो से अपने दफ़्तर की ओर
मैं भी तो निकला ही हूँ ना
तुमने ही कहा था अपने सपने पूरे करो
हाँ, शायद हो ही जायें वो भी कुछ ही सही
मेरे लिए तुम्हारा जिस्म कभी मायने नहीं रखता
"
तुम्हारा" होना ज़्यादा मायने रखता है
तुम नहीं रहोगी तो उन कहानियों का क्या मतलब
जो मैं रातों को लिखता हूँ.
ख़ैर सब कुछ वैसा ही है बस तुम नहीं हो
और घुप्प अँधेरा है मौत सी ख़ामोशी के साथ I

"अच्छा सुनो ना,"
कहीं चलते है,
कहीं पर भी,
किसी भी रास्ते पर.. 

जहाँ खूबसूरत मोड़ ना हो
वहाँ किसी का जोर ना हो.. 
जहाँ कपड़ों पर रंग ना हो
वहाँ वादों पर संग ना हो..

जहाँ चूल्हे का धुंआ हो,
तुम वो स्वेटर पहनो जो मैंने बुना हो..

जहाँ तुम्हे सिंदूर लगाना ज़रूरी ना हो,
वहाँ मेरे बिना तुम्हारी ज़िंदगी अधूरी हो..

जहाँ हम चाँद को एक-साथ देखते हो,
वहाँ सर्द रातोंं में अलाव यूँ सेंकते हो..

"
अच्छा सुनो ना,"

मैं चल निकला हूँ,
अभी नहीं बस कल निकला हूँ..
वादा है मिलेंगे कभी,
अपने सपने सिलेंगे कभी..


27/2/2014

शायद ये जानते हुए की.... शायद ये जानते हुए की जानकार कुछ नहीं होगा मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ की तुम कैसी हो, खाना टाइम पर खा लेती होना ...